सोमवार, 21 जून 2010

तेज पुंज का प्रतीक - भगवा ध्वज

हमारी हिन्दू संस्कृति कि यह विशेषता है कि हमारे जितने श्रद्धा के केंद्र हैं, मान-बिंदु हैं, उनके पीछे कोई न कोई श्रेष्ठ तत्व अवश्य है। आज दुर्भाग्य से वे तत्व सुप्तावस्था में हैं, वे सिद्धांत अमूर्त रूप में हैं और इसी कारण हमारा यह ह्रास दृष्टिगोचर हो रहा है। आज आवश्यकता है उन तत्वों को जागृत अवस्था में, उन सिद्धांतों को मूर्त रूप में लाने की, उनको अपने आचरण में प्रत्यक्ष रूप से कार्यान्वित करने की। इसका एक ही उपाय है किउन तत्वों को, उन सिद्धांतों को बोधगम्य बनाना, उनको ऐसे रूप में सामने रखना जिससे साधारण जनता ठीक प्रकार से समझ सके और हृद्यंगम कर सके।

इन्ही श्रेष्ठ तत्वों की कड़ी में हमारा भगवा ध्वज भी आता है। विचारणीय बात है की हमारा देश कितना समृद्धिशाली देश था, परन्तु आज ---- ? आज की हमारी स्थिति संतोषजनक नहीं है। इस स्थिति से निकलने का केवल एक मार्ग है की हम अपनी संस्कृति को पुनः गौरवशाली बनाने का दृढ निश्चय लेकर समस्त हिन्दू समाज को सुसंघटित करें। यह तभी हो सकता है जब हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा का हमें हर समय ध्यान रहे। इसके लिये हमें अपने राष्ट्र ध्वज के साथ साथ अपना पुरातन ' भगवा ध्वज ' भी अपनाना होगा। इस भगवा ध्वज को देखते ही हमे अपने पूर्व गौरव का ध्यान हो आता है। अपनी परंपरा का आँखों के सम्मुख चित्र उपस्थित हो जाता है। इसी भगवा ध्वज के नीचे हुए असंख्य बलिदानों का स्मरण हो आता है। जिनके कारण आज हम खुद को हिन्दू के रूप में जीवित देखते हैं। यह भगवा ध्वज हमारे हिन्दू-राष्ट्र की आशाओं-आकांक्षाओं तथा हिन्दू-राष्ट्र का तेजपुंज प्रतीक है। इस भगवा ध्वज का सम्मान-रक्षण हमारे जीवन का आद्य-कर्तव्य है। यह बात प्रत्येक हिन्दू के मन में जागृत हो तथा इस ध्वज के पीछे जो हमारी संस्कृति का अमूर्त गौरव छिपा है उसे मूर्त रूप देने में कार्यशील हों। यह हम सब हिन्दुओं का कर्तव्य है। ये ही कामना है।

वन्दे मातरम्------

भारत माता की जय------

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