रविवार, 30 सितंबर 2012

भ्रम के साम्राज्य में अँधेरा ही अँधेरा और ....... तन्हाई


आशा गुप्ता ’आशु’ जी से फ़ेसबुक पर हुई वार्ता.................



आशा गुप्ता ’आशु’ - भ्रम के साम्राज्य में अँधेरा ही अँधेरा
                               और......... तन्हाई

Gopal Krishna Shukla - और......... तन्हाई....
                                     भ्रम का मायाजाल

आशा गुप्ता "आशु" - मायावी दुनिया में
                                अस्तित्व का अभाव.......

Gopal Krishna Shukla - और साथ ही स्थिरता शून्य.....

आशा गुप्ता "आशु" - शून्य में तलाशते स्वयं को हम.....

Gopal Krishna Shukla - और "हम" से प्राप्त करते "अहम"......... फ़िर उसी में डूबते चले जाते हैं.....  साकार करने मायावी लोक को......

आशा गुप्ता "आशु" - क्या हासिल....... रिक्तता के सिवाय

Gopal Krishna Shukla - रिक्तता या शून्य ही तो जीवन है

आशा गुप्ता "आशु" - ये जीवन है या अभावों की संवेदना....

Gopal Krishna Shukla - जीवन मिला ही है वेदना की अनुभूति करने के लिये

आशा गुप्ता "आशु" - और इसकी पराकाष्ठा......... अंतर्मन में घुलता विष

Gopal Krishna Shukla - पराकाष्ठा अपने मष्तिष्क की देन है... चाहे तो अंतर्मन में विष भर कर जियें, चाहे वेदना को सहकर परमपिता को जीवन समर्पित कर मोक्ष प्राप्त कर लें..

आशा गुप्ता "आशु" - अनुभूतियों के शिखर से ढुलकते हुए सब कुछ तितर-बितर होने लगता है ऐसे में परमपिता भी कहाँ साथ होते है.. कोई हाथ आगे नही बढाता संभालने के लिये

Gopal Krishna Shukla - अनुभूतियों के शिखर से ढुलकते हुए तभी सब कुछ तितर-बितर होने लगता है, जब हम अपने मष्तिष्क से अपना नियंत्रण खो देते हैं... अपने हृदय को मायावी दुनिया से लगा लेते हैं... ऐसी स्थिति में हम खुद ही अपने साथ नही रहते........ जब तक हम खुद अपने साथ नही रहेंगें तब तक परम शक्ति को कैसे पा सकते है

आशा गुप्ता "आशु" - स्वयं का स्वयं के प्रति व्यवहार जब दुरूह होने लगता है तभी तो ये सारी स्थितियाँ पैदा होती है... अवसाद का वर्चस्व.. कुंठा को ही जन्म देती है ना

Gopal Krishna Shukla - "स्वयं" में जब "स्व" की अधिकता होगी... तभी दुरूह स्थितियाँ और कुंठा जन्म लेगी

आशा गुप्ता "आशु" - कुंठित हृदय.... सुख का अभिलाषी... बस अंतहीन पीडा

Gopal Krishna Shukla - यह "स्व" जन्य परिस्थितियाँ हैं

आशा गुप्ता "आशु" - हाँ..... और कभी-कभी इसके सिवा कोई और उपाय भी नही होता

Gopal Krishna Shukla - उपाय है..... मन को विजित करना

आशा गुप्ता "आशु" - बहुत कठिन है डगर पनघट की......

Gopal Krishna Shukla - "पनघट" की डगर से हट कर यदि "मरघट" की डगर पर ध्यान केंद्रित करें...... तो सब आसान है

आशा गुप्ता "आशु" - हहहहहहहा........ इस लोक में सुख भोग चुके अब आगे की सुधि ली जाये..

Gopal Krishna Shukla -  सच यही है कि.... सुख अगले लोक में ही है...


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शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

माँ गंगा अजेय हैं-------

          सन 1953  दिनांक 29 मई को एवरेस्ट पर अपना पहला कदम रखने वाले एडमंड हिलेरी ने इतिहास रचा। अपार जीवट वाले हिलेरी ने उसके बाद भी हिमालय की दस और चोटियों की चढाई की। हिलेरी उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर भी गये तथा विजय हासिल की।

          लेकिन यह तथ्य बहुत कम लोग जानते होंगे कि एक समय ऐसा भी आया जब यही हिलेरी माँ गंगा से हार गये थे। जोशीमठ और श्रीनगर के सरकारी दस्तावेजों में हिलेरी के इस अधूरे अभियान का लेखा-जोखा मिलता है।

          सन 1977 मे हिलेरी "सागर से आकाश" नामक इस अभियान में निकले थे। हिलेरी का मकसद था कोलकाता से बद्रीनाथ तक माँ गंगा की धारा के विपरीत जल प्रवाह पर विजय हासिल करना। हिलेरी के इस दुस्साहसी अभियान में तीन जेट नौकाओं का बेडा था। 1- गंगा, 2- एयर इन्डिया, 3- कीवी। हिलेरी की टीम में 18 लोग शामिल थे जिनमें एक उनका बेटा भी था। हिलेरी का यह अभियान उस समय चर्चा का विषय बना हुआ था।देश-विदेश की निगाहें उन पर लगीं थीं।

          हिलेरी कोलकाता से पौढी गढवाल के श्रीनगर तक बिना किसी बाधा के पहुँच गये, यहां कुछ देर रुकने के बाद बद्रीनाथ के लिये निकल पडे।

          हिलेरी से श्रीनगर मे एक पत्रकार ने साक्षात्कार भी लिया था, जिसे श्रीनगर की नगर पालिका की सन 1977 की स्मारिका में भी देखा जा सकता है। पत्रकार ने हिलेरी से पूछा कि "क्या आप अपने इस मिशन में कामयाब हो पायेंगे? हिलेरी ने पूरे आत्मविश्वास से जवाब दिया कि "जरूर, मेरा मिशन जरूर सफ़ल होगा।"

          श्रीनगर से कर्णप्रयाग तक गंगा की लहरें हिलेरी को चुनतियाँ देती रहीं और ललकारती रहीं। नंदप्रयाग के पास गंगा के तेज बहाव और खडी चटानों से घिर जाने पर उनकी नावें आगे नही बढ पायीं। हिलेरी ने तमाम कोशिशें की पर अन्त मे हिलेरी को हार माननी पडी और एडमंड हिलेरी को बद्रीनाथ से काफ़ी पहले नंदप्रयाग से ही वापस लौटना पडा। "सागर से आकाश" तक का हिलेरी का यह अभियान सफ़ल नही हो पाया।

          नंद प्रयाग से हिलेरी सडक मार्ग से वापस लौटे। रास्ते मे उनसे कई लोगों ने कहा कि "माँ गंगा को जीतना सरल नही।"

          माँ गंगा से हार जाने की कसक हिलेरी के मन में आजीवन रही। हिलेरी जब दस साल बाद दोबारा उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में आये तो उन्होने विजिटर बुक में लिखा - "मनुष्य प्रकृति से कभी नही जीत सकता, हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिये।"

जय माँ गंगे-------------------

वन्दे मातरम-----------------

भारत माता की जय-----------