रविवार, 20 जून 2010

सांस्कृतिक परम्परा

हिन्दू संस्कृति मानव जीवन की शक्ति, प्रगतिशील साधनाओं की विमल विभूति, राष्ट्रीय आदर्श की गौरव मयी मर्यादा और स्वतन्त्रता की वास्तविक प्रतिष्ठा है। इस तथ्य का चिंतन करते हुए हिन्दू परम्परा ने सदा संस्कृति-निष्ठां के मंगलमय मार्ग को अपनाया। फलस्वरूप हिन्दू-संस्कृति भारत भूमि के कण-कण में व्याप्त है, भारतीय साहित्य के पद-पद में ओत-प्रोत है और भारतीय इतिहास के प्रत्येक पृष्ठ पर अंकित है।

इसके अधिष्ठान एवं अनुष्ठान को अक्षुण बनाए रखने के लिये अपेक्षित है सांस्कृतिक आचार्यों के उन आचरणों का अनुशीलन और अनुसरण, जिनके द्वारा हिन्दू संस्कृति के तत्वों की अभिव्यक्ति होती है।

हिन्दू संस्कृति के निर्वाहक इन आचार्यों ने हिन्दू संस्कृति के द्वारा खुद को सुसंस्कृत किया। इसी का सुखद परिणाम है कि विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोणों एवं सैध्दांतिक मतभेदों के रहने पर भी सांस्कृतिक परम्परा की अविच्छिन्न गति में किसी प्रकार का अंतर न पड़ सका। आत्म-कल्याण के साधनों में विविधता आने पर भी सर्वभूतहित की भावना पर किसी प्रकार की ठेस न लगाने पायी। उसी परम्परा के अनुसरण करने में ही मानव जाति का कल्याण है।

वन्दे मातरम---------

भारत माता की जय------

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