गुरुवार, 27 मई 2010

स्वतंत्रता संग्राम के अमर गीत ( २ )

मेरे पिछले लेख में आपने कुछ कवी और लोकगीतकारों की रचनाओं का संक्षिप्त रूप देखा। आज प्रस्तुत हैं कुछ अन्य रचनाकारों की रचनाएं -----

भारत में अंग्रेजों के दुष्कृत्यों तथा अत्याचारी-तानाशाही पूर्ण शासन से विक्षुब्ध हो कर कलमकारों ने अपनी लेखनी के द्वारा क्रान्ति का उद्घोष किया।

बिहार प्रान्त के शाहाबाद जनपद के डुमराव नामक स्थान में जन्में श्री मनोरंजन प्रसाद सिन्हा ने ' फिरंगिया ' नामक पुस्तक लिखी जो अंग्रेजों द्वारा जब्त कर ली गई। प्रस्तुत है उसी पुस्तक की कुछ पंक्तियाँ ------

सुन्दर सुघर भूमि भारत के रहे रामा,
आज उहे भईल मसान रे फिरंगिया॥
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एको जो रोउवां निरदेसिया के कलपति,
तोर नास होई जाई सुन रे फिरंगिया॥
दुखिया के आह तोरे देहिया के भसम करी,
जरि भुनि होई जईबे छार रे फिरंगिया॥
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भारत की छाती पर, भारत के बच्चन के,
बहल रक्तवा के धार रे फिरंगिया।
दुधमुहाँ लाल सम, बालक मदन सम,
तड़प-तड़प देले जान रे फिरंगिया॥

तत्कालीन गीतों में गीतकारों ने अपनी शब्द रचना के द्वारा जन चेतना जागृत की। बलिया के श्री प्रसिद्ध नारायण सिंह ने भोज पूरी भाषा में कुछ इस प्रकार लिखा------

अलगा आपन बोली बिचार,
कन-कन में जेकरा क्रांति बीज,
अइसन भोजपुर तप्पा हमार,
इतिहास कहत है पन्ना पसार॥

अंग्रेजों के अमानुषिक अत्याचारों पर श्री प्रसिद्ध नारायण सिंह ने ही लिखा-------

गांवन पर दगलानी गन मसीन,
बेंतन सन मरलन बीन-बीन।
बैठाई डाल पर नीचे से,
जालिम भोकलेन खच-खच संगीन।
बहि चलल खून के तेज धार।।

घर घर से निकलली आहि-आहि,
कोना-कोना से त्राहि-त्राहि,
गांवन-गांवन लूट फूंक,
मारल काटल भागल पराहि,
फिर कवन सुने केकर पुकार॥

बनारस में काशिराज चेत सिंह के साथ अंग्रेज अफसर वारेन हेस्टिंग्स का भीषण संघर्ष हुआ। तब बच्चे-बच्चे की जबान से निम्नलिखित दो पंक्तियाँ गूंजा करतीं थीं जो आज कल भी कहीं कहीं सुनाई पड़ जाती हैं----

घोड़े पर हौदा हाथी पर जीन,
जल्दी में भाग गया वारेन हेस्टीन॥

स्वयं बहादुर शाह जफ़र ने अपनी कलम से लिखा था---

गाजियों में बू रहेगी, जब तलक ईमान की
तख्तें लन्दन तक चलेगी, तेग हिदुस्तान की॥

एक लोक रचनाकार का निम्न छंद बाजुओं को फड़का देता है---

तेगन से मारि-मारि तोपन को छीन लेत,
गोरन को काटि-काटि गीधन को दीन्हा है।
लन्दन अंग्रेज तहां कंपनी की फौज बीच,
मारे तरवारिन के कीच कर दीन्हा है॥

भारत का इतिहास ऐसे सशस्त्र मोर्चों से भरा पड़ा है। जिसमे भारतीय नारियों ने न केवल भाग लिया अपितु कई मोर्चों का सफल नेतृत्व भी किया। इसमें कुछ नाम प्रमुख हैं---- देवी चौधरानी, चुआड़ की रानी शिरोमणि, कित्तूर की वीर रानी चेनम्मा, शिवगंगा की वीरांगना वेलुन्चियार, नेपाल की महारानी लक्ष्मीदेवी और पंजाब की रानी जिन्दा।

किसी कवी ने ऐसी वीरांगनाओं के लिये लिखा है----

रण में जाकर डट गयीं कभी,
अरिदल को मार भगाने को,
चंडी का प्रबल प्रचंड तेज़,
दुनिया को याद दिलाने को।

या झटपट उद्यत हुईं स्वयं ही,
अनल-ज्वाल धधकाने को,
लपटों में जा छिप गयीं कभी,
जो अपना धर्म बचाने को।

इसके कारण ही मान बढ़ा,
जौहर-व्रत की चिंगारी का,
है कितना गौरवशाली पद,
वसुधा में हिन्दू नारी का॥

शेष अगले लेख में----

वन्दे मातरम्-------

भारत माता की जय-------

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