शनिवार, 22 मई 2010

संस्कृति पर कुठाराघात

भारतीय संस्कृति मानव जीवन की शक्ति है। हमारे राष्ट्रीय आदर्श की गौरवमयी मर्यादा है। मानव-जीवन की स्वतन्त्रता की द्योतक है। हमारे सामाजिक व्यवहारों को निश्चित करती है। भारतीय संस्कृति भारत की प्रेरक शक्ति है।

भारत में कई विदेशी जातियां विभिन्न उद्येश्यों से आयीं और भारत में ही बस गयीं। अंग्रेज भी भारत इसी प्रकार आये थे और भारत में अनेक वर्षों तक राज्य कियाa। अंग्रेजों के शासन से भारतीयों के आचार-विचार, रहन-सहन आदि पर बहुत प्रभाव पड़ा। भारत ने अंग्रेजों से संघर्ष कर के देश तो आजाद करा लिया, परन्तु अपनी संस्कृति में पूरी तरह से नहीं लौट पाए। ब्रिटिश शासन काल में तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट (भारत मंत्री) लॉर्ड मैकाले ने भारत में रह कर यह आभास किया की भारत वंशियों की संस्कृति को नष्ट किये बिना भारत में शासन करना कठिन है। इस पर उस ब्रिटिश शासनाधिकारी ने गहन विचार कर यह निर्णय लिया की भारत में हम अब ऐसी जाति पैदा करेंगे जिसका रंग और रक्त तो भारतीय होगा परन्तु शिक्षा, रूचि और संस्कृति से वह अंग्रेज होगा। जिसके परिणाम अब भारत में स्पष्ट रूप से दिखलायी पड़रहे हैं।

हमारे कर्म, विचार और आचरण में भारतीयता का अभाव साफ़ दिखता है। हम राजनैतिक रूप से स्वतंत्र हैं पर मानसिक गुलाम हैं। स्वाधीनता शब्द के वास्तविक अर्थ का विचार ना करके केवल स्वाधीनता शब्द की रट लगाना, पीड़ित और क्रीतदास की मनोवृति होने के अलावा और कुछ नहीं।

हिन्दुस्तान की राजनैतिक स्वन्तान्त्रता का तभी कोई सार्थक अर्थ हो सकता है, जब यहाँ भारतीय जीवन के अनुकूल शाशन और शिक्षा व्यवस्था हो। स्वतंत्र भारत के शास्नाधिकारियों का यह कर्तव्य है की हिन्दुस्तानी जीवन के सर्वोन्नती के मार्ग भारतीय संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिये अंग्रेजों ने जो अपनी विदेशी शिक्षा, शिक्षा पद्धति और संस्कृतिके प्रसार द्वारा अपने हित और दूरगामी परिणाम वाले राजनैतिक षड्यंत्र रचे थे उन्हें निर्मूल करें और भारत में भारतीय संस्कृति की रक्षक एवं अनुकूल शिक्षा एवं शाशन व्यवस्था बनाये। स्वतंत्र भारत के शासकों का यह कर्तव्य है की वे इस बात का ध्यान रखें की भारत में रहने वाले हर वर्ग की उन्नति और उनके सांस्कृतिक अधिकार निष्कंटक बने रहें।

व्यक्ति निर्माण ही समाज-निर्माण और समाज-निर्माण ही देश और विश्व के निर्माण का कारक है। व्यक्ति निर्माण श्रेष्ठ संस्कृति के बिना संभव नहीं। किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व उसकी संस्कृति से ही स्थायी रह सकता है।

भारत का उत्थान भी भारतीय संस्कृति के पालन से ही संभव है। अपनी संकृति का त्याग मनुष्य, समाज और देश की अवनति का कारक है। बड़ा आश्चर्य होता है की हमारे शासक वर्ग ने अंग्रेजों की बहुत बातें ग्रहण की पर उनसे वे उनके स्व-सभ्यता-प्रचार को नहीं सीख पाए। आज कहने को तोह देश में हिन्दुस्तानियों का शासन है, किन्तु भारतीय संस्कृति के विकास के लिये कोई सुदृढ़ प्रयास होता दिखाई नहीं देता। देश में जब तक भारतीय संस्कृति के अनुरूप भारतीय शिक्षा पद्धति का विकास नहीं किया जाएगा तब तक यह देश 'भारत' होते हुए भी अभारतीय भावों का शिकार बना रहेगा।

हम स्वतंत्र तो हो गये, पर हम, हमारे शासक अपनी भारतीय संस्कृति के अनुपालन में शिथिल हैं। हम अंग्रेजों की भाषा-भूषा-संस्कृति को ज्यादा महत्व देने लगे हैं। किसी भी व्यक्ति के लिये अंग्रेजी भाषा या विश्व की अन्य किसी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना और उसमे पारंगत होना बहुत गर्व की बात है। परन्तु अपनी संस्कृति को छोड़ना, उससे दूर हो जाना तो अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारना है, अपनी पहचान की कब्र खोदना है। ऐसा कर के तो हम अपनी संस्कृति को नष्ट और लुप्त करने के मार्ग पर बढ़ेंगे। हमें और हमारे शासक वर्ग को ध्यान रखना चाहिए कि अगर भारत की संस्कृति नष्ट या मृत हो गयी तो भारत का भी जिन्दा रहना मुश्किल है। विश्व के मानचित्र से भारत का नामोनिशान मिट जाएगा।

इसलिए हमे हर प्रयास करके अपनी संस्कृति को जिन्दा रखना है। तभी हम पूर्ण स्वाधीन और स्वतंत्र हो सकेंगे तथा भारत को विश्व पटल पर सर्वोच्च स्थान दिला सकेंगे।

वन्दे मातरम----------

भारत माता कि जय----------

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