मंगलवार, 25 मई 2010

स्वतंत्रता संग्राम के अमर गीत ( १ )

भारत की आजादी के लिये हुए स्वतन्त्रता-संग्राम में जहां आजादी की दीवाने क्रांतिकारी देश के लिये अपना सर्वस्व निछावर कर स्वातंत्र-यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे कर अमर हो गये, वहीं, उसी स्वातंत्र-यज्ञ में देश-प्रेमी कलमकारों ने अपनी लेखनी के द्वारा जनमानस को झिंझोड़ा और स्वातंत्र-समर में भाग लेने को प्रेरित किया।

यहाँ उन्ही जाने-अनजाने कवियों, कलमकारों की प्रतिष्ठित और गुमनाम पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-----

उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद के कवि स्व० कृष्ण शंकर शुक्ल 'कृष्ण' द्वारा रचित 'वेणी माधव बावनी' का अवधी भाषा का एक छंद अत्यंत प्रेरक था----

तेरी तेग ताव माँहि तडपत जात कृष्ण,
काटि-काटि मुंड झुण्ड दुंद पट कतु हैं।
मच्छिका समान ही उड़ाती है शत्रु शीश,
गौरंग सुअंग को सुआंग सो रंगतु है।
खंग कोपि तोपि देत तोपन को लोथिन सों,
गगन-गगन को तो कछु ना गनतु है।
सिर पै समान असि, सर पै समान अरि,
सर पै नहाय रक्त, सरजा करतु है॥

कवि अजीमुल्ला ने अपनी पुस्तक 'पयामे आजादी' में आजादी प्राप्त करने के लिये नवजवानों को कुछ इस प्रकार ललकारा----

आज शहीदों ने तुमको अहले वतन ललकारा,
तोड़ो गुलामी की जंजीरें बरसाओ अंगारा।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख हमारा भाई-भाई प्यारा,
यह है आजादी का झंडा इसे सलाम हमारा॥

वीर सपूता बुंदेलखंड के सूरमाओं ने अंग्रेजों को मरते दम तक बुदेलखंड में प्रवेश नहीं करने दिया। एक अनाम लोकगीतकार ने अपने लोकगीत में कहा----

मचले आजादी के लाने, बुन्देला दीवाने,
मर्दन सिंह बानपुर वारे, नाहर से गुर्राने,
लखतन मर्दन सिंह को, गोरा छिरिया से मिमियाने,
कहत भवानी सुन लो प्यारे, मर्दन मरद कहाने॥

बुंदेलखंड के एक अन्य लोकगीतकार श्री देविदास जी का प्रचिलित लोकगीत----

लोहागढ़ के वीर बाँकुरे, अंग्रेजन को मारें,
भुट्टा से काटें पल-पल में, कोऊ ना आवे द्वारे,
मच गयी खारेन कीच खून की, भागी पलटन गोरी,
देविदास फतह झांसी की हो, यह अर्जी है मोरी॥

श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान जो स्वयं भी एक स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनकी प्रसिद्ध कविता 'झांसी की रानी' का एक अंश----

बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झांसी वाली रानी थी॥

प्रो० राजमणि शुक्ल 'विवेक' ने अपनी भोजपुरी भाषा की कविता में लिखा----

अन्धेरि अउर अनियाऊ रहलि अंग्रेजन कर जेठी बेटी,
जनता के समुझि लिहे रहलेनी ओन्हने घर की चेटी॥

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घर-घर चिठिया पहुँचली नेवता कर खून कई अच्छर कागज़ नाहीं,
ठकुरान हथवां हेन्सली तलवारि आजादी कई जोरा उठल मन माँहि,
हाथ उठाइके नीर कहई घुंघटा के तरे रहबी अब नाहीं,
देश के प्रेम कई पीर, घरे बइठी अंगरेज कई मेम सिहाहीं,
कंत के साथ बसंत बिना, खुन्वां कर आज जरी अब होली,
रूप कई अच्छत, ओठ कई अमृत, जै-जै भारत मंत्र कई बोली॥

--------- शेष अगले लेख में----

वन्दे मातरम -----

भारत माता की जय ----------

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