शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

दंतेवाडा नरसंहार काण्ड

दंतेवाडा नरसंहार काण्ड

भारत सरकार के लिये सिर्फ एक झटका। परन्तु उस नरसंहार में शहीद जवानों के लिये क्या। सरकार द्वारा मुआवजा और वीरता पदक ?

सरकार यह क्यों नहीं सोंचती कि जिन जवानों को उसने तमाम पैसा खर्च कर एक मजबूत सिपाही बनाया, देश कि रक्षा करने के लिये, आज वह सिपाही देश के आतंरिक झगड़ों में शहीद हो रहे हैं।
पेट अगर भूखा होगा और सामने वाला व्यक्ति भूखे पेट को दिखा कर खायेगा तो भूखा पेट माओवादी ही बनेगा, चोर ही बनेगा, डकैत ही बनेगा।

आजादी के तमाम वर्ष बीतने के बाद भी भारत का नागरिक भूखा है, नंगा है, आसमान के नीचे सोता है क्यों ? उसके पास आमदनी का कोई जरिया क्यों नहीं है ? यह सरकार को सोचना चाहिए पर उसके पास सिर्फ योजनायें हैं कार्यान्यवन नहीं।

अब सवाल यह है कि इसमें हम क्या कर सकते हैं या हमें क्या करना चाहिए।

हमें ऊपर भी देखना चाहिए जिससे हम खुद कि तरक्की कर सकें, और नीचे भी देखना चाहिए जिससे हम अपने से कमजोर की मदद कर सकें।

पर क्या यह हम ये करते हैं- अवश्य करते हैं हम ऊपर देखते हैं सिर्फ ऊपर। अपनी तरक्की सोचते हैं सिर्फ अपनी। दूसरों से हमे क्या मतलब। दूसरा भूखा है या किसी अन्य समस्या से पीड़ित है हमे उससे कोई सरोकार नहीं। हम सिर्फ अपना देखेंगे क्यों कि हमको तरक्की करनी है, अपने लिये कमाना है, अपने बच्चों का सुख देखना है। दूसरों को देखने कि हमे कोई आवश्यकता नहीं।

नहीं मित्रों ! हमे अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। हमको हमारे आसपास, हमारा समाज, अपने देश पर भी ध्यान देना होगा। सिर्फ ध्यान ही नहीं उसमे दिलचस्पी भी लेनी होगी। हमें सिर्फ लेना नहीं, देना भी सीखना होगा। हमें समाज के देश के हर बच्चे को अपना बच्चा समझना होगा। हमें अपने निवाले में से आधा निवाला दुसरे के भूखे पेट को भी देना होगा।

यह सब हम लोगों को ही करना होगा। सरकार से आशा करना अभी तक भूल साबित हुआ है आगे भी भूल ही साबित होगा।

हम सक्षम हैं, हम दूसरों को भी सक्षम बनायेंगे। हम मनुष्य हैं और हमें मनुष्य धर्म का पालन करना ही होगा। यही सूत्र अपनाना होगा।

यही दंतेवाडा और अन्य स्थानों पर शहीद हुए माँ भारती के लिये शहीद हुए जवानों को सच्ची श्रधांजलि होगी।

भारत माता कि जय !

2 टिप्‍पणियां:

  1. "ददाति प्रतिग्रहणाति"-पहले दो फिर लो यह भारतीय संस्कृति रही है। अत: सिद्धान्तत: आपकी बात ठीक है। किन्तु माओवाद और आदिवासी समाज दो अलग विषय हैं, उनको उन्हीं परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिये। माओवाद एक अन्तर्राष्ट्रीय षडयंत्र है, जिसका उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना है, आदिवासी तो मात्र माध्यम बनाये जा रहे हैं।

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  2. Sumant & gopal both of them echoed their deep anguish. it is undoubtedly grave situation. india is targetd from outside with the help of some greedy / confused countrymen. polical as well social remidial measures with intrigrity may help to resolve somewhat. political differences may not come in between for resolving the matter.
    the concern gopal has shown towards the poverty is alarming. every capable person should come forward to help the needy. every holy book in either faith has propounded theories in this regard. we are supposed to follow them as per our faith 100 %. or to some percentage atleast. i say this because i follow this, i swear. our good done to the society will be returned indirectly benefitting to our descendants. bhola shukla

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