रविवार, 25 सितंबर 2022

सह-अस्तित्व की महत्ता (लघु कथा)

॥ सह-अस्तित्व के अभाव में व्यक्तिगत अस्तित्व का कोई अस्तित्व नहीं ॥ 


बनते हुए विशाल भवन के पास लगे ईंटों के ढेर ने कहा- 'गगनचुंबी अट्टालिकाओं का निर्माण हमारे अस्तित्व पर आधारित है, उसका शिलान्यास ही न हो तो कई मंजिलों की बात तो दूर रही एक दीवाल का खड़ा होना भी मुश्किल है। भवन के आकार और आधार का श्रेय हमें ही तो है।'


गारे ने ईंटों की गर्व भरी वाणी सुनी तो उससे न रहा गया। गारे ने कहा- 'इतना झूठ क्यों बोलते हो। क्या तुम नहीं जानते कि एक सूत्र मे पिरोकर ईंट-ईंट को जोड़कर सुदृढ़ता प्रदान करने का श्रेय हमें ही है। गारे के अभाव में ईंटों का ढेर ठोकर मारकर गिराया जा सकता है।'


किवाड़ और खिड़कियों ने भी प्रतिवाद किया- 'गारे भाई ! यह कौन नहीं जानता कि ईंटों को जोड़कर तुम दीवारें खड़ी करते हो। परन्तु यदि उस मकान में खिड़की-दरवाजे न होंगे तो ऐसे असुरक्षित मकान में कोई रहने को भी तैयार न होगा। भवन की पूर्णता तो हम पर ही निर्भर करती है।'


शिल्पी उनकी बात चुपचाप सुन रहा था, वह बोला- 'आप लोगों में भले ही कितनी ही पारस्परिक सहयोग की भावना बढ़ जाए पर सबको एक सूत्र में पिरोने वाला तो मैं ही हूँ। यदि मेरा हाथ न लगे तो ईंट, गारा और किवाड़ अपने-अपने स्थान पर ही पड़े रहेंगे। मेरे शिल्प के बिना आपका कोई अस्तित्व नहीं।'


तब भवन ने फिर एक बार सोचा- "सह-अस्तित्व के अभाव में व्यक्तिगत अस्तित्व का कोई महत्व नहीं। झूठे अभिमान को छोड़कर दूसरों के महत्व को भी समझना चाहिए।"


वंदे मातरम 

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