यह अपना भारत देश और यहाँ की राष्ट्र भाषा हिंदी है, पर हम आज भी हिन्दी दिवस मनाते हैं। यह कितनी हास्यास्पद स्थिति है कि आजादी छठे दशक की पूर्णता की ओर बढ़ते हुए हम आज भी हिन्दी को राष्ट्र भाषा का स्थान नही दिला पाए। जबकि विश्व में कहीं भी भाषा - दिवस, सप्ताह, पखवारा आदि नही बनाये जाते हैं। वहां बिना दिवस और सप्ताह के ही राष्ट्र भाषाएँ समृद्ध और सम्मानित हैं। हर नागरिक अपने देश कि भाषा का प्रयोग कर गौरवान्वित होता है। भाषा के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करने के कारण ही भारतवासियों को विदेशों कि ओर देखना पड़ता है। अपनी भाषा को सम्मान न देने के कारण ही हम आज भी विकाशशील देशों की श्रेणी में कतारबध्द होकर खड़े हैं।
नेतृत्व कर्ताओं ने कहा था कि देवनागरी लिपि को भारतीय संविधान के अनुसार केन्द्रीय कार्यालयों की भाषा १५ वर्षों के उपरांत बनाया जायेगा। किन्तु १५ वर्षों के बीतने पर भारतीय भाग्य विधाता अपनी बात से मुकर गये और यही हमारी राष्ट्र भाषा के साथ घात हुआ जिसे वह आजतक सहन करती आ रही है। हिन्दी और हिन्दुस्तानियों की इस पीड़ा को कबतक अनदेखा किया जाएगा?
यह तो सभी जानते हैं कि किसी स्वतंत्र राष्ट्र के लिये तीन बातों का विशेष महत्त्व होता है तथा इनसे विरत रह कर किसी भी राष्ट्र का गौरव स्थाई नही हो सकता।
१- राष्ट्र ध्वज
२- राष्ट्रीय संविधान
३- राष्ट्र भाषा
भारत में राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रीय संविधान का यथोचित सम्मान न करने वाले के लिये समुचित दंड का प्राविधान है। लेकिन राष्ट्र भाषा हिंदी के संबंध में एसा नही कहा जा सकता। हमारी राष्ट्र भाषा आज भी मेले और झमेले के बीच में फंसी है। हिन्दी भाषा साहित्य की बजाय सत्ता की मुखापेक्षी है। यदि देश कि अनपढ़ जनता हिन्दी का तिरस्कार करती तो क्षम्य था किन्तु राष्ट्र भाषा हिन्दी हमारे शासको-प्रशासको, राजनेताओ, नौकरशाहों, विश्वविद्यालय, तकनीकी महाविद्यालय के प्राचार्यो-आचार्यो की उपेक्षा और तिरस्कार का दुःख झेल रही है।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी बोलकर राष्ट्र भाषा का तथा भारत का मान बढ़ाया था। वही हमारे देश के अन्य प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्रा में विश्वमंच पर अंग्रेजी की पुष्टता और सम्पन्नता से संबंधित कशीदे पढ़ते है।
इंग्लैण्ड में फ़्रांसीसी भाषा का प्रयोग होता था किन्तु वहां के सांसदों ने अपने दृढ निश्चय और भाषा प्रेम के आगे फ्रांसीसी भाषा को संविधान में टिकने नही दिया। इसी प्रकार रूस और चीन भी अपनी भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में हेय नहीं मानते तथा विदेश यात्राओं में दुभाषियों द्वारा अनुवाद कराकर अपने भाषण को प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न यह है कि भारत, जहां एक अरब से अधिक आबादी है तथा बाजारीकरण में प्रमुख स्थान पर रहते हुए भी भाषागत तिरस्कार को क्यों झेलता चला जा रहा है। क्या भारत के निवासियों में स्वाभिमान नही रहा अथवा अंग्रेजी सभ्यता में आकंठ डूब चुके हैं, जिसके कारण राष्ट्र हित का बलिदान करने में भी हिचक नहीं महसूस करते।
अंत में यही कहूंगा कि हमें अपने और राष्ट्र के सम्मान के लिये हिन्दी को उसका पूर्ण सम्मान दिलाना चाहिए। केवल हिन्दी-दिवस मनाने से काम नही होगा हमें हिन्दी जो कि हमारी राष्ट्र भाषा है उसका खोया सम्मान वापस लाना होगा।
जय हिन्दी----------------
जय हिंद---------------
वन्दे मातरम-------------
भारत माता की जय---------------
प्रभावी लिखा है और सच भी।
जवाब देंहटाएंGOPAL BHAI ...
जवाब देंहटाएंHAINDI AB BECHARI HO GAII HAI
ek samay tha ,...log english ki boycott karne ki sochate the ...ab kaha
phir bhi ...hindi kabhi bhi rastriy mudda nahi ban paya ...
thanks...to join with u ..
हमारे देश मेँ आन्तरिक विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो रही है। मैँ पिछले एक वर्ष से तमिलनाडु मेँ रह रहा हूँ, और यहाँ के राजनीतिज्ञ तमिलनाडु को एक अलग देश बनाना चाहते हैँ। वो हिन्दी का पूर्णतया विरोध कर रहे हैँ और कमोबेश यही हाल महाराष्ट्र मेँ है। इन विषम परिस्थितियोँ मेँ ऐसे विचारपूर्ण लेख पुर्नजागरण की प्रेरणा हैँ।
जवाब देंहटाएंadaab
जवाब देंहटाएं