मंगलवार, 8 नवंबर 2022

शबरी के राम





            भोली शबरी राम के मुखारविंद को एकटक निहार रही थी। उसके जीवन भर की प्रतीक्षा का आज अंत हो चुका था। राम के दर्शन करके वो धन्य हो रही थी। राम उसके जूठे बेर बड़े चाव से खा रहे थे। उनके चेहरे पर तृप्ति और संतोष का भाव था।

            माता शबरी ने सकुचाते हुए राम से पूछ ही लिया -- "यदि रावण का वध नहीं करना होता तो तुम यहाँ कहाँ से आते?" सहसा राम के मुख पर गंभीरता के भाव प्रकट हुए। राम बोले - "भ्रम में न रहो माँ ! क्या राम सिर्फ रावण का वध करने आया है? अरे रावण को तो लक्ष्मण अपने पैरों से बाण चला कर मार सकता है। दूर अयोध्या से हजारों कोस चल कर इस गहन वन में भटकते हुए राम तो केवल तुमसे मिलने आया है माता। ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखंडी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला-चिल्ला कर उत्तर दे कि "इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था।"

            जब कोई कपटी भारत की परंपराओं पर अँगुली उठाए तो काल उसका टेटवा दबा कर कहे " चुप रहो ! भारत की सभ्यता ही एकमात्र सभ्यता है जहाँ राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वन वासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्षों का वनवास स्वीकार करता है। "

            "राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाये तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चलकर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है। राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएं अवश्य पूरी होती हैं।"

            शबरी एकटक राम के मुख से झलकते राष्टभिमान को निहार रही थी। 

            राम कहते रहे- "राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है। माता ! राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के लिए, आदर्श की स्थापना के लिए, राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अन्त करना ही धर्म है। राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है पहले अपने देश में बैठी शत्रु समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषण जैसे देशद्रोहियों की कमर तोड़ी जा सके। राम आया है भावी पीढ़ियों को यह बताने कि रावणों से युद्ध केवल राजा और सेना की शक्ति से नहीं, बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से और वनवासियों के सहयोग से जीते जाते हैं।"

            शबरी की आँखों मे स्नेह और स्वाभिमान के आँसू छलक आए थे। उसने बात बदल कर कहा "कन्द खाओगे?" राम मुस्कुराए और बोले "बिना खाए जाऊँगा नहीं माँ।"

            शबरी कुटिया से झपोली में कन्द ले कर आई और राम के समक्ष रख दिए। राम और लक्ष्मण खाने लगे तो बोली "मीठे हैं न प्रभु?" राम ने हँसते हुए कहा "माँ के पास आकर खट्टे और मीठे का भेद भूल गया हूँ। यही अमृत है, बस इतना समझ रहा हूँ।" शबरी मुस्कुराई और बोली "गुरुदेव ने सही कहा था कि सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो राम।"


साभार - गौरव प्रधान 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें