सोमवार, 17 मई 2010

! ! जय - हिंद ! !

( मित्रों क्षमा चाहता हूँ की मेरा यह लेख काफी बड़ा हो गया है। मैं विवश हूँ। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर जब भी लिखा जाता है, शब्दकोष के शब्द तो कम पड़ ही जाते हैं, लेखनी भी और लिखने को मचलती रहती है। )

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की 'विमान दुर्घटना में मृत्यु' की बात सत्य है या असत्य, कुछ पता नहीं। उनका निधन उस दुर्घटना में हुआ या नहीं ? अगर नहीं हुआ तो नेताजी ने अपना बाकी जीवन कहाँ और कैसे बिताया ? वे फिर कभी वापस भारत आये या नहीं ? ऐसे तमाम सार्थक प्रश्नों का उत्तर कब मिलेगा ? इन प्रश्नों के उत्तर की देश और देशवासियों के लिये काफी उपयोगिता है।

पर, अब इससे भी ज्यादा उपयोगी प्रश्न यह है कि हम सुभाष बाबू के विचार, उनका देश के प्रति असीम प्यार, उनकी सोच, उनके आदर्श को जीवित रखें।

उनके विचार-सोच आज भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सन्दर्भ में उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके जीवनकाल में थे। सरकारी तथा गैर सरकारी दोनों स्तर के कुछ स्वार्थी लोगों ने उनके विचार, उसूल और आदर्शों का सही रूप प्रस्तुत करने के बजाय एक पहेली, एक कहानी, एक मिथक बना कर रख दिया। इन स्वार्थी लोगों ने सुभाष बाबू को कभी भी एक राष्ट्रवादी राजनैतिक, सिद्धांतवादी सामाजिक कार्यकर्ता, भविष्यदृष्टा एवं दार्शनिक के रूप में प्रतिष्ठित नहीं किया। देश की आजादी से लेकर आज तक भारत में बनी सरकारों के इस स्वार्थ और कुटिल शरारत से भरे दोष को जनमानस के सामने उजागर करना समाज के देशभक्त बुद्धिजीवी वर्ग का परम कर्त्तव्य है। जिससे भावी पीढी नेताजी के आदर्शों को अपना कर देश को सही और उचित मार्ग पर ले जाएँ।

नेताजी में नेतृत्व के सभी गुण विद्यमान थे। उनकी उत्कट देशभक्ती, त्याग कि भावना, कार्य निष्पादित करने की लगन और दूरदृष्टि की कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। नेता जी बहुत भावुक भी थे, भक्ति संगीत सुनकर भाव विभोर हो जाते थे। देश भक्ति का जज्बा, देश पर कुर्बान हो कर इतिहास-पुरुष बनकर पीढ़ियों तक आदर्श बन जाना-- यह खुशनसीबी विरलों को ही मिलती है। हमारे नेताजी ऐसे ही खुशनसीब व्यक्ति थे।

दुसरे विश्वयुद्ध ने विश्व के देशों के आपसी रिश्ते और कई देशों की भौगोलिक सीमायें तक बदल दीं। सुभाष बाबू का कहना था की ऐसे वक्त पर हिन्दुस्तान को आजाद कराया जा सकता है। उनका यह भी दावा था कि भारत कि आजादी के लिये यह आखरी जंग साबित होगी। उनका कहना था की यह आजादी सिर्फ भारत की ही नहीं अपितु पूरी मानवता कि आजादी होगी और बर्तानिया साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील होगी।

भारत के महान क्रांतिकारी गण सुभाष बाबू के आदर्श थे। सुभाष बाबू आजीवन पक्के और वफादार कांग्रेसी रहे। सुभाष बाबू गांधी जी के अहिंसा आन्दोलन के द्वारा भारत को आजादी दिलाने की खोखली नीति पर कभी विश्वास नहीं करते थे। इसी कारण से नेहरु जी की कांग्रेस ने द्वेष वश कभी सुभाष बाबू का साथ नहीं दिया। जिस समय आजाद हिंद फ़ौज की टुकड़ियां मोर्चे पर मोर्चा मारती हुई भारत की धरती की ओर बढ़ती आ रही थीं, उस समय कांग्रेस ने, जिसके हाथ में करोडो हिन्दुस्तानियों कि नब्ज थी जिससे आजाद हिंद फ़ौज को काफी मदद मिल सकती थी, ऐसा कुछ नहीं किया। बल्कि २४ अप्रैल १९४५ को जब भारत आजाद हिंद फ़ौज और सुभाष चन्द्र बोस के प्रयासों से आजादी के कारीब था तब जवाहर लाल नेहरु ने गुवाहाटी की एक जन सभा में कहा " यदि सुभाष चन्द्र बोस ने जापान कि मदद से भारत पर हमला किया तो मैं स्वयं तलवार उठाकर सुभाष से लड़कर रोकने जाऊँगा। " ( वाह ! री कांग्रेसी देशभक्ति )

सुभाष बाबू का सपना था एक आजाद, ताकतवर और समृद्ध भारत। वे भारत को एक अखंड राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे। कांग्रेस देश का विभाजन करके सुभाष बाबू के अखंड आजाद हिंद आन्दोलन की पीठ पर छुरा भोंक दिया। विभाजन का घाव तो एक दो पीढ़ियों के बाद भर जाता, लेकिन दो देश, तीन धर्म पर उसके दुष्प्रभावों ने नफरत की शक्ल में जड़े जमा ली हैं जो कि वक़्त गुजरने के साथ और मजबूत ही हुई हैं। अगर नेता जी कि चेतावनियों पर कांग्रेस समय रहते ध्यान देती और अपने गोरे रहनुमाओं के विभाजन के जाल में ना फंसी होती तो मानवता के माथे पर भयानक रक्त-पात का कलंक लगने से बच जाता।

कांग्रेस का तो बस एक ही राग है गांधी जी ने अपने अहिंसा आन्दोलन के द्वारा भारत को आजादी दिला दी। कांग्रेस की जनसभाओं में गा-गा कर एक ही राग अलापा जाता है--- " दे दी हमें आजादी ----- कर दिया कमाल। " उन सैकड़ों - हजारों शूरवीरों का इतिहास नें कहीं जिक्र ही नहीं जिन्होंने दो-दो आजीवन कारावास भोगे, कोल्हू में बैल कि तरह जोते गये, नंगी पीठों पर कोड़े खाए, वंदेमातरम का उद्घोष करते हुए फांसी का फंदा चूम कर फांसी पर झूल गये। गांधी जी राष्ट्रपिता है, नेहरू जी चाचा है, कांग्रेस की चाटुकारिता में सुभाष बाबू के लिये जगह कहाँ बचती है। गाँधी जी के अहिंसा के बचकाने नारों और नेहरू जी की खोखली नीति एवं भयंकर नादानियों पर अब जनमानस नए सिरे से सोच रहा है और उनके द्वारा की गयी गलतियों से भारत को हुए नुक्सान पर अपना सर धुन रहा है।

युवा वर्ग के लिये नेता जी के विचार काफी दृढ थे। स्वामी विवेकानंद कि तरह वे भी सदैव युवा वर्ग को अपने आन्दोलन से जोड़ते रहे। वे नौजवानों को इतना ताकतवर बनाना चाहते थे कि युवा देश की आजादी के लिये सर्वस्व न्योछावर करने को सहर्ष तैयार रहे। उनका कहना था कि स्वराज की नींव कष्ट और त्याग पर रखी जाती है, जिसपर राष्ट्रनिर्माण होता है। जिसके लिये जरूरी है कि हर परिवार से एक नवजवान भारत माता के चरणों में सर रखने को आगे आये। उनका कहना था कि मेरे कुछ सिद्धांत हैं, उसूल हैं और मैं उनके लिये जान भी दे सकता हूँ। जान बचाने के लिये सिद्धांतो और उसूलों कि तिलांजलि नहीं दे सकता। हमारी लडाई सांसारिक सुख-सुविधा के लिये नहीं है, ना ही हम इस हाड-मांस के शरीर के लिये लड़ रहे हैं। हमारी जंग तो दुष्ट शक्तियों के खिलाफ है। सत्य और स्वतन्त्रता हमारा आदर्श है। रात के बाद दिन आता है, इसी तरह हमारी भी विजय होगी। हम नहीं जानते कि आजादी मिलने तक हम में से कौन जिन्दा रहेगा, पर हमें विश्वास है कि हमें आजादी अवश्य मिलेगी और हमें इसके लिये आत्मविश्वास के साथ अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए।

अंत में मैं सिर्फ इतना और लिखना चाहता हूँ कि " कितना भी झूठ गढ़ा जाए, चाहे झूठ का महल खड़ा कर दिया जाए, पर एक दिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की सच्चाई भारत और भारतवासियों के सामने जाहिर होकर रहेगी, तब आने वाली पीढियां राजनीति के इन ठेकेदारों से, इन चाटुकारों से, इन भडुए इतिहासकारों से सुभाष बाबू के बारे में किये गये अनर्गल प्रलापों का प्रमाण मांगेगी।

तभी यह भारत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का ऋण उतार सकेगा, और तभी यह भारत नेताजी के स्वप्नों का भारत होगा। जय हिंद ! !

वन्दे मातरम-------

भारत माता कि जय----------

5 टिप्‍पणियां:

  1. भाई जी, अत्यंत जटिल बातों को सरलता से कहने की आपकी मौलिक शैली काबिले दाद हैं- आपका अनुज मोहन

    जवाब देंहटाएं
  2. आपके लेख के द्वारा सुभाष चन्द्र बोस के जीवन के विषय में पढ़ कर जानकारियाँ मिली. === अमर नाथ

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा लेख। चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है। http://gharkibaaten.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. देश को स्वतंत्रता गाँधी-सुभाष समन्वय के कारण मिली थी. किंतु हम उसका सदुपयोग नही कर पाए. अतः स्वतंत्रता उद्दानदाता में परिवर्तित कर डी गयी है.

    जवाब देंहटाएं